Pyara Bachpan !!


आज मुख पुस्तक पर एक विडीओ देख कर मुझे अपने बचपन का एक अनुभव याद आया जो कि मैं आपके साथ बाटना चाहती हूँ वो कहते हैं ना...हमें वो करना चाहिए जो हमारा दिल कहे.....मुझे लिखना पसंद है .......और  बहुत समय बाद मैं फिर कुछ लिखना चाहती हूँ  
क़िस्सा मेरे बचपन का है.......मुझे बचपन से पालतू जानवरो का बहुत शौख है ।मेरा ज़्यादातर बचपन पापा की सरकारी नौकरी की वजह से सरकारी टाउन्शिप्स में ही बीता है।वहाँ पर कई घर हुआ करते थे और सब पापा के ऑफ़िस के लोग ही रहते थे। उस टाउन्शिप के लोग भले मुझे ना जानते हो पर वहाँ का हर पालतू जानवर मुझसे भली भाँति परिचित था क्योंकि स्कूल से आने के बाद मेरा ज़्यादा समय उनके बीच गुज़रता था। हर दूसरे दिन किसी डॉग के बच्चे को चुरा लाना और माँ से इस बात पर जिद्द करना की हम उसे अपने घर में रख ले ,एक आदत सी थी। माँ की घंटो की काउन्सलिंग के बाद मैं उस बच्चे को भारी मन से उसकी माँ के पास छोड़ कर आती थी। एक रात ऐसे ही माँ ने बिना कुछ सोचे मुझे ग़लती से ये बता दिया कि उन्होंने बाहर किसी के बाग़ीचे में डॉग के बहुत प्यारे बच्चे देखे हैं मैं ये जानकार कर बहुत ख़ुश थी क्योंकि अब मुझे जल्दी ही अपने नए साथी मिलने वाले थे किंतु रात होने वजह से मुझे सुबह तक का इंतज़ार करना था। सुबह होने पर हमेशा की तरह पापा ऑफ़िस के लिए निकल चुके थे और माँ उनके जाने  के बाद हमारे साथ एक झपकी ले रही थी कि उसी समय शायद बारिश शुरू हो गई....थोड़ा समय बीता और फिर अचानक ज़ोर से किसी  बच्चे के रोने की आवाज़ हम सबके कानो में गई  और हम तुरंत जाग गये। ये रोने की आवाज़ आख़िर कहाँ से रही है ? इस प्रश्न को व्याकुलता से लेकर हम बाल्कनी में आए और देखकर जाना कि ये तो उसी डॉग के बच्चे हैं जिनका ज़िक्र माँ ने रात में किया था। हर कोई अपने घरों से झाँक रहा था परंतु मदद  के लिए  आगे कोई नहीं आना चाहता था माँ की सहेलियाँ अपनी तरह की बातें कर रही थी....कोई बोल रहा था कि बच्चों के पास मत जाओ क्योंकि उनकी माँ हमें नुक़सान पहुँचाएगी.....किसी दूसरे के अनुसार...इन बच्चों को स्किन की कोई बीमारी भी है जो कि उन्हें अपनी माँ से मिली है! इसलिए  हमें उन्हे नहीं छूना चाहिए। जितने लोग उतनी बातें थी.....पर आपको  क्या लगता है? मैंने उनकी बातें  सुनी होगीमैं ये ठान बैठी थी मुझे इन बच्चों को हर हाल में बचाना है। माँ ने मेरी जिद्द के सामने हार मान ली और ग़ुस्से से बोली.....चल मेरे साथ....जब बच्चों की माँ काटेगी और बहुत सारे इंजेक्शन लगेंगे तब मज़ा आएगी।मैंने उनकी बात  एक कान से सुनी और उसी से निकाल दी।नीचे उतर कर हमारा पहला काम ये पता लगाना था कि आख़िर रोने की आवाज़ कहाँ से रही है? हमने उन आवाज़ों का पीछा किया तो जाना कि बच्चे शायद एक झाड़ी के अंदर है ।इतनी देर में हमने ये भी देखा उनकी माँ बेताबी से उस झाड़ी के चक्कर काट रही  है। इस बात से  हमारा शक यक़ीन में बदल गया।मुझे उस समय  बच्चों  के रोने की आवाज़ों के साथ सिर्फ़ ये सुनाई दे रहा था कि लोग कह रहे है कि मुझे अंदर नहीं जाना चाहिए ......पर मैं बिना कुछ सोचे ,उसी समय अंदर चली गई। अंदर जाने पर भी बच्चे नज़र नहीं रहे थे।मेरे पास समय कम था क्योंकि बहुत तेज़ बारिश हो रही थी।थोड़ी देर बाद देखा कि बच्चे एक गड्ढे के अंदर थे जिसमें ख़ूब पानी भरा था ।मैंने आगे बढ़कर अपना हाथ बिना वक़्त ज़ाया किए उस गड्ढे में डाल दिया और एक एक करके छह बच्चों को बाहर निकाला फिर हमने उन बच्चों को अपने साथ लाई डलिया में रखा और कपड़े से लपेट कर एक कार्टन में रख दिया। उस समय तक बच्चों ने रोना बंद दिया था क्योंकि हमने उन्हें उनकी माँ साथ गैराज में सुरक्षित रख दिया था क्या ख़ाक उन बच्चों की माँ ने मुझे एक भी दाँत लगाया हो ? पूरे समय वो हमें सिर्फ़ निहार रही थी।मैं  बच्चों को चाहते हुए भी ज़्यादा समय ना दे पाई क्योंकि कुछ ही देर में मुझे स्कूल के लिए निकलना था।  
समय बीता.....दिन निकले और बच्चे बड़े होकर मेरी माँ के एक बार फिर समझाने की वजह से मुझसे आज़ाद हो गये ।मैंने उस अनुभव से ये जाना कि जानवरो में इंसानो से ज़्यादा समझ होती है और वो हमसे कहीं ज़्यादा सुलझे हुए हैं। वो प्यार के बदले सिर्फ़ प्यार देना जानते हैं। वे या तो आपसे प्यार करते हैं या नफ़रत .....उनके जीवन में हम इंसानो की तरह कुछ बीच का नहीं होता।      

  




PS: I got my first pet in 2009.His name was Goofy.Although I had lost him so early but he was the best thing that ever happened to me.


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